जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।
व्यंग्य
हिंदी व्यंग्य. Hindi Satire.

Articles Under this Category

हिन्दी की होली तो हो ली - गोपालप्रसाद व्यास | Gopal Prasad Vyas

(इस लेख का मज़मून मैंने होली के ऊपर इसलिए चुना कि 'होली' हिन्दी का नहीं, अंग्रेजी का शब्द है। लेकिन खेद है कि हिंदुस्तानियों ने इसकी पवित्रता को नष्ट करके एकदम गलीज़ कर दिया है। हिन्दी की होली तो हो ली, अब तो समूचे भारत में अंग्रेजी की होली ही हरेक चौराहे पर लहक रही है।)
...

व्यंग्य समय - दिलीप कुमार

मैं व्यंग्य समय हूँ, हस्तिनापुर के समीप इंद्रप्रस्थ जो कि अब दिल्ली के नाम से जाना जाता है , यही मेरे व्यंग्य का खांडव वन रहा है। अब व्यंग्य के कई अर्जुन मेरे इस खांडव वन अर्थात व्यंग्य लोक को जलाने पर आतुर हैं।
...

'गड़बड़गोष्ठी' का उद्घाटन | व्यंग्य - हरिशंकर शर्मा

"भाई भोलूराम, गड़बड़गोष्ठी' का उद्घाटन तो पिछले सप्ताह ख़ूब हुआ, परन्तु उसकी चकाचक रिपोर्ट पत्रों में प्रकाशित नहीं हुई। यों चालीस-पचास पंक्तियों में छप जाने से क्या होता है। इस प्रकार के समाचार भला ऐसे छापे जाते हैं"-- मनसुख स्वामी ने बड़ी उदासीनता दिखलाते हुए कहा। "हाँ महाराज ठीक है--" भोलूराम बोले, "सचमुच ये अख़बार वाले बड़े मतलबी होते हैं। लीडरों और मिनिस्टरों की तो दिन में दस-दस बार तसवीरें छापते हैं परन्तु हमारे गुरुजी का नाम भी नहीं प्रकाशित किया। उस दिन उद्घाटन के समय अख़बार वाला मौजूद तो था, उसे भरपेट चाय भी पिलाई गयी थी, रसगुल्ले और सन्देश भी छकाये थे फिर भी भले आदमी ने ठीक-ठोक समाचार नहीं छपाये। बड़ा बुरा आदमी है।"
...

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश